A special poem written by me on the occasion of our 70th Republic Day. The poem is as follows :-
उस ईश्वर की दुत बन कर
जन्मी थी जब इस धरती पर,
गूँज पड़ी थी नारा नारा
किसे ज्ञात था चारों ओर
एक दिन होगा आप ही का जयकारा
पवन ने भी दिया आशीर्वाद
प्रश्नन हुए थे किसान,
सब के मुख से एक ही बोल
एक दिन छूहेगी आसमान
देवी माँ का रूप बनकर
जन कल्याण पर जोर लगाती,
देवी माँ कहलाए जाने पर भी
खुद को सर्वदा भक्त बताती
यह तेजियाल रूप जिसका
दिल में भारत माता,
उनके एक ही चित्कार से
पत्थर पानी बन जाता
जन जन के होठों पर
मुस्कान जिसने लाई,
तभी तो धरती की ईश्वर
तभी तो देवी माँ कहलाए
गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ने
जब देखा उनका रूप व काम,
प्रसन्न हुए इतना की
प्रियदर्शिनी दिया उपनाम
चरण जहां पड़े आपके
हो जाए चांदी - चांदी,
जय इंदिरा गांधी
जय इंदिरा गांधी
उस ईश्वर की दुत बन कर
जन्मी थी जब इस धरती पर,
गूँज पड़ी थी नारा नारा
किसे ज्ञात था चारों ओर
एक दिन होगा आप ही का जयकारा
पवन ने भी दिया आशीर्वाद
प्रश्नन हुए थे किसान,
सब के मुख से एक ही बोल
एक दिन छूहेगी आसमान
देवी माँ का रूप बनकर
जन कल्याण पर जोर लगाती,
देवी माँ कहलाए जाने पर भी
खुद को सर्वदा भक्त बताती
यह तेजियाल रूप जिसका
दिल में भारत माता,
उनके एक ही चित्कार से
पत्थर पानी बन जाता
जन जन के होठों पर
मुस्कान जिसने लाई,
तभी तो धरती की ईश्वर
तभी तो देवी माँ कहलाए
गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ने
जब देखा उनका रूप व काम,
प्रसन्न हुए इतना की
प्रियदर्शिनी दिया उपनाम
चरण जहां पड़े आपके
हो जाए चांदी - चांदी,
जय इंदिरा गांधी
जय इंदिरा गांधी
लेखक शौनक चक्रवर्ती
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